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Writer's pictureAnurag Sharma

नये साल का खाली डिब्बा ।

यह कस्बा (कसौली) जगमगा रहा था, सैलानियों की अनगिनत गाड़ियां और मौसम का बेतुका मिजाज़ ।

अपनी साँसों को कंपकपाती ठंड में धुएं सा महसूस करता हुआ मैं पैदल चल दिया । पेड़ों के बीच इतनी चकाचौंध से आसमान भी हैरान सा था, लेकिन कोई खुश था तो वह था आने वाला साल । कई महीनों से इंतेज़ार में बैठा नया साल आखिरकार इस साल के आखिरी दिन को जी भर के जीना चाहता था । रंगबिरंगी सजावट से लिपटे इस कस्बे के अनेकों होटल, एक आखिरी शाम का मधुर से गीत मेरे कानों में भी बजने लगा। मौका जश्न का था, उमंगों का था और न जाने कितने नए अरमानो के पनपने का था । सड़क पर चलते बच्चे ज़िद्द कर रहे थे नये खिलौनों की, नए स्कूल बैग की ओर कुछ, कुछ को तो सिर्फ जलेबी खानी थी ।

कुछ कदम और बढ़ा तो देखा एक पूरा परिवार कैमरे में कैद होना चाहता था, और मैं आज़ाद, अपनी ज़िन्दगी से। मैं मुस्कुराया, उन्हें उनका कैमरा वापिस देते हुए, हैप्पी न्यू ईयर कहकर आगे पढ़ गया । घर पर न होने की बेचैनियों के बीच मैं बढ़ता रहा, दूसरों के घर की ओर जिसे आजकल मैं अपना बसेरा मान बैठा था, वहां मेरा इस शाम भी कोई इंतेज़ार नहीं कर रहा था । ये मालूम तो था, पर दिल से धोखा करने की आदत सी हो गयी है । दरवाज़े पे खुद ही खटखटाया, खुद ही आवाज़ लगाई "कौन है? अंदर आ जाओ ", फिर ख़ुद ही दरवाज़ा खोल कर बड़ी खुशी से इस आख़िरी शाम में शामिल हो गया ।

देर तक एक जूते से दूसरे जूते को खोलने की कश्मकश से मैं झुंझला उठा और पटक कर अपने जूतों को, इस सर्द शाम को थोड़ा गर्म बनाते हुए बिस्तर में जा बैठा । "आज भी वही दाल चावल" अपने निराश से मन की बातों को अल्फ़ाज़ नहीं दे पाया, क्योंकि सुनने वाला तो बस ये दीवारें ही थी ना ।

एक करवट से दूसरी, ज्यों त्यों मैंने एक पहर निकाला और बैठ कर अपने मोबाइल की स्क्रीन को कुछ मिनट निहारता रहा । रात जश्न की है, ये तो बतला दिया था मेरे फ़ोन ने, तो मैं भी खुशी में जा उठा और याद आया माँ ने कुछ काजू डाल कर दिए थे एक डिब्बे में, उसे ढूंढ कर जब खोला तो दिल मानने को तैयार नहीं था । माँ तो दूर है, अरसे से दिए हुए काजू भी खत्म हो गए थे और जो बाकी था, वो थी बास यादें। नए साल में मेरे हिस्से बस एक डिब्बा था, यादों से भरा कुछ खट्टी और कुछ मीठी । एक मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ खुद से एक वादा करते हुए, सबको याद करता हुआ मैं सो गया । बेहतर बनना है, ख़ुद से अपने कल से । यादों के खाली डिब्बे में कुछ और यादें जोड़ के ताकी आने वाले साल में ये खाली न रह जाए ।


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