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कबूतर की दूसरी शादी ।

Updated: Mar 11, 2023

तालाबंदी के दिन हैं, अभी कुछ ही दिन हुए हैं मुझे घर लौटे हुए ।

अभी पाँव से मोज़े उतरे ही थे, अभी तो आंगन में लगे पुदीने का हाल चाल पूछा था, हाँ बस अभी ही तो मिट्टी पर रेंगती स्ट्रॉबेरी को निहारा था, अभी ही तो नज़र दौड़ाई थी बचपन की तस्वीरों पर जो अरसे से बंद पड़ी थी, धूल खाती हुई अलमारी के सबसे ऊपर वाले खाने में ।

मौसम बदलने लगा है, कभी ठंड हो रही है तो कभी मैंगो शेक बनाती मिक्सर पूरे घर में कम्पन कर रही है, वहीं हर समाचार देने वाले चैनल पर हल्ला है तो सिर्फ कोरोना वायरस का।

आसमान में उड़ते कीट पतंगों को खाने हर रोज़ कोई नया परिंदा पंख मारता नज़र आता है, तो कहीं खेतों में सुबह शाम अपनी गोभी को परखता एक किसान का परिवार। सुखद एहसास का अनुभव तो हो रहा है, पर हर रोज़ की तरह मैं सुबह देर से उठता हूँ, खाता हूँ, सो जाता हूँ और यह सिलसिला जारी है हर पांच घंटे के अंतराल पर।



शाम को कभी मन होता है तो निकल कर आंगन में सजे ये नारंगी, लाल, श्वेत, मैरून लहराते फूलों को थोड़ा पानी भी दे देता हूँ। ऐसी ही एक शाम, मैंने देखा एक कबूतर ज़ख़्मी है, चलने की कोशिश कर रहा है जो कभी उड़ता था ।

कशमकश तो हुई लेकिन फिर मैंने उसे पकड़ ही लिया, वो फड़फड़ाया ज़रूर लेकिन अपनी अपाहिजता से वह भी वाकिफ़ था। उठाकर उसे मैं देखने लगा, तो पाया की उसकी एक हड्ड़ी टूट गयी है जो उसके पंख को सहारा देती है। मरहम किया, कुछ दाने डाले और कटोरी भर पानी उसके सिरहाने रखकर मैं भी उस शाम अपने खाने औऱ सोने की प्रक्रिया में विलीन हो गया ।

अगली सुबह वो मृत था और इसका मुझे आभास भी था । बाहर निकल कर नज़र दौड़ाई तो पाया की साथ वाले घर की खिड़की पर उसका घोंसला था, वहां उसका एक साथी और भी था, शायद मादा ।

तालाबंदी के इस दौर में, माँ अंडों को सेक रही होगी और नर कबूतर, कर्फ्यू से मिली ढील में राशन लाने गया होगा। जिस समय वह मुझे मिला था वो शाम का समय था, ठीक कर्फ्यू ढील से दो घण्टे बाद ।

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आप क्रोनोलॉजी समझिये......।

मैंने कहा था न आसमाँ में और भी परिंदे मंडरा रहे थे, कबूतर कम थे, और वह कबूतर अधिकांश परिंदों से मेल भी नहीं खाता था।

कहीं इसीलिए वो चोटिल हो नहीं गया होगा था?

खैर जाने दीजिये, हमें इस टिप्पणी से अपना सुखद एहसास थोड़ा न गवारा करना है ।

मैंने विधिपूर्वक उस कबूतर को दफ़नाया था, आज दोपहर में उसके घर से बड़ी आवाज़ आयी तो नज़र को जो अनुभूति हुई वह चौंकाने वाली लगी, वहाँ फिर से दो कबूतर हैं । एक अंडों का रख रखाव करता है तो दूसरा कर्फ्यू ढील में राशन लेन जाता है, मास्क लगा कर । चेहरा ढकना अनिवार्य है, परिंदो से बचने के लिए और कोरोना से भी।

कबूतर ने फिर से निकाह कर लिया, एक नया जीवन निर्वाह कर लिया,

मैं चलता हूँ, अगली कहानी में फिर मिलेंगे।


Stay safe readers!

the_overthinking_vet

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